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सोमवार, 14 मार्च 2011

जहाँ पूर्ण संतुष्टि नही होती वहाँ आस्था और विश्वास कमजोर पड़ने लगते हैं।

लगभग हर वैवाहिक पुरूष अपने वैवाहिक जीवन में कुछ प्रतिशत असंतुष्ट रहता है इसी वजह से शिला की जवानी और डांस आॅन फ्लोर वाले पूरी तरह ग्लैमर युक्त नृत्यांगनाओं युक्त गाने तथा ओल्ड इज गोल्ड कैटेगरी के पुराने रोमांटिक गीत और आयटम गाने आज भी हमे सुनने को हर न्यूक्लियर फैमली में मिल ही जाते हैं जिन्हें हर पुरूष सुनकर सपनों में या अपनें अतीत में खो जाता है। और हमारे साहित्य में हमे अक्सर सुनने को मिलता है कि जहाँ पूर्ण संतुष्टि नही होती वहाँ आस्था और विश्वास कमजोर पड़ने लगते हैं। कुछ पुरूष इन तीन शब्दों के चक्कर में इतना पड़ जाते हैं कि वे संतुष्टि शब्द को उन विज्ञापनों में जो रोज न्यूज पेपरों में छपते हैं जैसे ये तेल वो कैप्सूल, मर्दानगी बढ़ाओं आदि में पैसा खर्च कर, पाने की कोशिश में अपनी जेब खाली कर मूर्ख ही बनते नजर आते हंै।
और आस्था शब्द के चक्कर में अपनी सेलरी का एक बड़ा हिस्सा उन टेलीशॉपिंग नेटवर्क की दुकानों में जो केवल रातों को टेलीविजन चैनल्स पर सक्रिय हो जाती हैं। जो हर परेशानी को हल करने में मदद वाले यंत्र और तावीज बेचते नजर आती हैं में खर्च कर,या उन कथा सुनाने वाले और उपदेश देने वाले बाबाओं के चक्कर में आ कर जो टीवी चैनल्स पर कथा कम और अपने भाषण ज्यादा झाड़ते हैं और कथा को बीच में ही छोड़ कर अपने कार्यकर्ताओं के जरिये अपने ट्रस्ट के खर्चो के लिये इनडायरेक्ट तरीके से दान मांगना चालू कर देते हैं।
और अब बचा विश्वास शब्द ये शब्द पुरूष ढूढ़ँने लग जाता है अपनी साथी महिला मित्र या उन खूबसूरत लड़कियों के चक्कर में जो केवल अपने खर्चों के लिये उनसे मित्रता बढ़ाती हैं। या कहें की वे लड़कियाँ इन पुरूषों को एक पालतू तोते से ज्यादा कुछ नही समझती जिससे कि वे रोज प्यार भरी बातें ही करती हैं। कुछ मूर्ख उन तांत्रिकों के वर्गीकृत विज्ञापनों के जरिये उन तांत्रिक विद्याओं में विश्वास करने में अपनी अक्ल पर पर्दा डाल कर और अंत में ठगा सा महसूस होकर अन्य किसी तांत्रिक के चक्कर में पड़ कर विश्ववास को खोजते हैं।
इन पुरूषों लिये चाणक्य वाक्य है कि अपनी स्त्री जैसी हो उसी में संतुष्ट होना चाहियें तथा अपने पास जितना भी धन हो उसी में ही सुखी रहना चाहिये ।

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