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बुधवार, 14 सितंबर 2011

आज सब एक दूसरे से कह रहे हैं कि हिंदी बोलो,हिंदी में काम करो

आज सब एक दूसरे से कह रहे हैं कि हिंदी बोलो,हिंदी में काम करो, अख़बारों में भी लम्बे चौड़े लेख आयें हैं. एक दिन लोग हिंदी का राग अलापते हैं फिर अगले साल अलापेंगे. आप में से कितने लोग मुझे ये बता सकतें हैं कि यदि हमें पहली क्लास के बच्चों के लिए बारहखड़ी सिखानी हो तो हमारे पास आजके हाईटेक ज़माने में क्या उपलब्ध है. मैंने ऐसा कोई भी टीवी चैनल नहीं देखा जो बच्चो को घर पर पढने में मदद कर सके अपने प्रोग्राम के जरिये. दूरदर्शन का जो ज्ञानदर्शन चैनल है उस पर तो समझ में ही नहीं आता कि क्या पढ़ा रहे हैं और किसे पढ़ा रहे हैं. इस चैनल पर एक भी ऐसा प्रोग्राम नहीं है जो गांव-गांव मे बच्चो को हिंदी लिखने और उसकी व्याकरण समझने में मदद कर सके.  अगर प्रसार भारती इस चैनल का इस दिशा में उपयोग करे तो देश का साक्षरता स्तर सुधर सकता है. में जब अपने बच्चे के कोर्स में हिंदी कि १-२ बुक ही देखता हूँ तो मुझे बड़ी चिंता होंती है कि कही ये इंग्लिश मीडियम में हिंदी सिखने से बंचित न रह जाये. हिंदी सिखाने का उत्साह  किस कदर कम हो चुका है इसका सबसे बड़ा उदहारण है : आप youtube पर हिंदी बारहखड़ी के मुश्किल से १० विडियो भी नहीं सर्च कर पायेंगे.

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