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मंगलवार, 11 अक्तूबर 2011

हमेशा याद रखो ( things to always remember in life )

  हमेशा याद रखो (रामायण में बताया गया है) कि दूसरों कि निंदा से बड़ा कोई पाप नही है, संतों की शरण में जाकर संतसग से बड़ा कोई सुख नही है, मनुष्य शरीर में दरिद्रता से बड़ा कोई दुख नही है।

हमेशा विपरीत हालात में जब आप संकट में फंस चुके हों तो भी ठंडे दिमाग से अपने हाव-भाव पर नियंत्रण रख कर अपनी बुद्धि का उपयोग करें जैसे उस बंदर ने अपने धोखेबाज मगरमच्छ की पीठ पर बैठ कर किया था जब उसे मगरमच्छ ने ये बताया था कि वह अब उसकी पत्नी का भोजन बनेगा। तब बंदर ने बड़ी चतुराई से मगरमच्छ को ये बताया था कि उसका हृदय तो पेड़ पर छूट गया है और स्वयं मगरमच्छ उसे पुन: उस पेड़ पर वापस ले आया था और बंदर उस संकट से मुक्त हो गया था।

यदि संकट के समय आपका कोई मित्र अपनी जान बचा ले और आपको छोड़ दें तो ऐसे मित्रों से दूर रहो जैसे एक कहानी में दो मित्र जंगल में भालू के अचानक आ जाने पर फंस जाने पर एक मित्र जो दुबला था पेड़ पर चढ़ गया। और जो मोटा था नही चढ़ पाया और उस दुबले मित्र ने उसकी सहायता न कर उस उसके हाल पर छोड़ दिया लेकिन उस मोटे मित्र ने अपनी बुद्धि का उपयोग किया उसने कहीं पढ़ा था कि भालू मृत शरीर को नही खाता अत: वह सांस रोककर लेट गया और भालू उसे सूंघ कर वहाँ से चला गया। लेकिन उन दोनों मित्रों की मित्रता समाप्त हो गई।

हमेशा अपनी मित्रों में ऐसे लोगो से भी मित्रता रखों जो केवल अपने लाभ के लिये ही आपकी मित्रता न चाहते हों जैसे एक कहानी में एक साधु के आश्रम में एक चूहा था वह साधू द्वारा रखे गये कंद मूल (फल आदि) ऊंचे से ऊंचे स्थान पर से भी छल्लांग लगाकर खा लेता था तथा अपने मित्र चूहों को भी देता था, एक दिन उस साधु ने अपने  मित्र साधु को ये बात बताई तो वह ज्ञानी साधु समझ गया कि वह जो इतनी ऊंची छल्लांग लगाकर चूहा फल खा लेता है जरूर उसके बिल में स्वर्ण और धन गढ़ा है जिसके बल पर वह इतनी लम्बी छल्लांग लगा लेता है अगले दिन उन साधुओं ने उस चूहे के बिल को खोदकर  वह धन निकाल लिया और वह चूहा निर्बल हो गया। इसी दौरान उसकी एक कौए से मित्रता हो गई थी जो कभी कभार ही उन फलों के स्वाद को चख लेता था। अब वही कौआ उसको रोज फलों के टुकडें देकर मदद कर देता था। और उसके जो मित्र चूहे थे वे केवल अपना पेट भरते थे और उसका मजाक उड़ाया करते थे।

दुश्मन बेहतर है, यदि वह सच्चा हो; मित्र बेहतर नही यदि वह झूठा हो। क्योकि सच्चाई से कभी कोई नही भटका; झूठ से ही लोग भटकते हैं।
-ओशो

हमेशा अपने मित्र की सहायता, अनजान व्यक्ति की सहायता और किसी अंजान को संकट से उबारने में फर्क समझों । यदि आप अपने किसी गहरे मित्र की मदद कर रहे हो या उसे संकट से उबार रहे हो तो ये आपकी मित्रता बढ़ाता है लेकिन यदि आप बिना सोचे समझे किसी अपरिचित व्यक्ति की मदद करते हो जिसे आप स्वभाव से जानते हो कि वह किस प्रवृत्ति का है और आप ये भी उसे फर्स्ट लुक में ही भांव जाते हो कि ये दुष्ट प्रवृत्ति का तथा अज्ञानी है तो ऐसे व्यक्ति की मदद बहुत ही सोच समझ कर अपना भला बुरा सोचकर करों। जैसे एक राजा के मखमली आरामदायक पलंग पर एक जूँआ रहता था जो रोज रात को उस राजा के सो जाने पर उसका खून चूसता था कि अचानक एक दिन उसके पलंग पर एक अनजान खटमल आ गया तब वह जँू से बोला कि कृपया मुझे भी इस पलंग पर अपने साथ रख लो मै भी राजा का तुम्हारी तरह सो जाने पर खून चूस कर जिंदा रहा करूंगा तब जूँ ने उसकी सहायता कर  पलंग पर उसे आश्रय दिया किंतु उस दुष्ट खटमल ने एक दिन दिन के समय ही उस राजा का खून चूसना शुरू कर दिया तब राजा ने अपने सेवादारों को बुलाकर उस पलंग को साफ करने का तुरंत आदेश दिया खटमल तो लकड़ी में घुस कर सुरक्षित बच गया लेकिन जँू पकड़ में आ गया और मारा गया।

अब आप संकट से उबाराने के विषय में समझो यदि आपके सामने कोई संकट में फंसा है संकट में फंसने से तात्पर्य है कि उसकी मृत्यु हो सकती हो, तो उसकी नि:स्वार्थ भाव से सहायता करनी चाहिए क्योकि जो नि:स्वार्थ भाव से संकट से उबारता है वह भगवान के समान होता है किंतु यदि कभी आपको किसी दुष्ट पर इसी परिस्थिति में दया आ जाये तो उसकी सहायता स्वयं न कर इंडायरेक्टली मदद करनी चाहिये जैसे एक कहानी में एक साधु एक बिच्छू को नदी में डूबते हुये देखते हैं तो वे उसे हाथ से पकड़ कर बहार निकालने की कोशिश करते हैं तो वह बिच्छू अपने स्वाभावानुसार उस साधु को डंक मारता है और जितनी बार साधु कोशिश करता है वह उतनी ही बार उस साधु को डंक मारता है लेकिन वह साधु उसको वह पीड़ा सहन करते हुए भी बहार निकालने में सफल हो जाता है। आज के युग में हम साधु की तरह तो डंक की पीड़ा बार बार नही सहन कर सकते इसलिये बुद्धिमानी इसी में है कि हम ऐसे बिच्छु को अपने हाथों से न निकालकर किसी लकड़ी की सहायता से उसे संकट से उबारें।

कभी भी लोगों को धोखे में न रखें और अपनी दूध की धुली इमेज बनाने की कोशिश न करें। जैसे आजकल धोखेबाज कंपनियों के एजेंट बनाते है लेकिन जब लोगो को पता पड़ता है तो उन्हें भागना पड़ता है जैसे एक कहानी में रंगा सियार साल भार जंगल में अपने ऊपर कलर लग जाने पर जंगल में पहचान में न आ पाने के कारण राज्य करता रहा लेकिन जब बारिस के समय उस पर पानी पड़ा तो उसकी असलियत सामने आ गई और जो जंगल का राजा शेर था उसने उसे   मार दिया।

  हमेशा ऐसे रहो जैसे कि एक बच्चा रहता है वह हमेशा वर्तमान में (प्रीजेन्ट माइंड) रहता है। क्यो हम अपने भूत जो बीत गया को सोच सोच कर अपने भाग्य को कोसें और जो अनिश्चित भविष्य है उसकी चिंता में चिता में जल जाये। हमेशा अपने जीवन में ऐसे भय से निडर हो कर रहो जैसे भगवान विष्णु अतिविशाल गहरे सागर में शेष नाग की शैय्या पर लेट कर आनंद पूर्वक रहते हैं, ध्यान में रहते हैं। वे हमे इसके माध्यम से बताना चाहते हैं कि कैसे हम भयंकर काले नाग रूपी संसारिक भय चिंता के साथ आनंदपूर्वक जी सकते हैं।
आप भले ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश में हार जाओ लेकिन शरीर से, मन से नही यदि आप मन से हार गये तो आप उस बुझी हुई राख के समान हो जाओगे जिसमें आपको आगे चलकर एक चिंगारी को ढ़ूढने में समय लग जायेगा और उसे हवा देना पड़ेगी।

  महात्माओं और महापुरूषो ने कहा है कि आदमी जितना अपने दुख से दुखी नही होता उतना दूसरों के सुख से दुखी होता है। हमेशा ये याद रखो की यदि आप नही चाहते कि आप किसी की ईर्ष्या का शिकार हो जिससे कि वह आपके बारे में ईर्ष्या के कारण गलत बातें आपके सामाजिक जीवन में फैलाये तो कुछ अपनो का भी भला चाहो। लेकिन उसे डायरेक्ट पैसों से मदद करने से अच्छा है कि आप उसके परिवार में जो बच्चें और पत्नि है उनकी उन आवश्यकताओं को जाने जिसे उस परिवार का मुखिया पूरा करने में चिंताग्रस्त हो। या फिर आपका मन इन सब चीजों को पसंद न करे तो उस व्यक्ति के सामने अपनी सफलता का रूतबा दिखाने से बचों वैसे मै आपको ये सुझााव देना चाहता हूँ कि हमारे ग्रंथो में लिखा है कि धन दान से शुद्ध होता है इसलिये अपनी क्षमता अनुसार दान-पुण्य में लगे रहो ताकि उस ईष्यायु व्यक्ति को भी आपकी प्रशंसा करने के लिये बाध्य होना पड़े। अधिकतर ईर्ष्यालु व्यक्ति हमारे ही सगे संबंधी होते हैं और सगे संबंधियो की सहायता करना अच्छा है आपका ही मान बढ़ेगा।

यदि आप बिजनेस रन करते हैं तो एक अच्छे बॉस बने और अपने व्यवसायिक संस्थान में हर माह की तिथि का अपने एकाउंट विभाग में सख्त निर्देश दें कि चाहे कुछ भी हो हर कर्मचारी को फलां तिथि तक वेतन मिल ही जाना चाहिये, साल का एक महिना फिक्स कर दें और ये भी फिक्स कर दें कि कितने प्रतिशत वेतन आप अपने कर्मचारियो का बढ़ायेंगे ताकि आपके कर्मचारी अपने परिवार को बता सकें कि आप बिना प्रार्थना के सब कर्मचारियों का वेतन बिना भेदभाव के बढ़ाते हैं। भले ही आप अपनी कंपनी या संस्थान में हल्का सा भी घाटा किसी माह उठायें लेकिन उस माह जो मुख्य त्यौहार पड़े अपने कर्मचारियो का ध्यान ऐसे ही रखें जैसे कोई पिता अपने बच्चों का किसी त्यौहार पर रखता है, इस तरह आपके कर्मचारी भी अपने परिवार के प्रति आपके इस उदार स्वभाव का लाभ लेते हुये अपना कर्तव्य निभा पायेंगें। ये बातें आप यदि फॉलो करगें तो आपका हर कर्मचारी आपके संस्थान में ऐसे कार्य करेगा जैसे वह अपने ही व्यवसाय को बढ़ा रहा हों।
 
आज हम भय से ग्रस्त हैं जिसका मूल कारण है हम दूसरों के वर्तमान और उसके भविष्य की जानकारी लेने की कोशिश करते हैं जिसका सबसे अच्छा उदाहरण है अत्यधिक न्यूज चैनल देखना तथा न्यूज पेपर की मसालेदार खबरों में ज्यादा ध्यान देना। जो हम यहाँ पढ़ते और देखते हैं उसी से ग्रस्त होकर आज हम असत्य की भावना से ग्रस्त होकर हर शनिवार शनि देवता के मंदिर भागते हैं और ढेर सारा तेल चढाते हैं फिर भी हमारा भय नष्ट नही होता। और सत्य की भावना से ग्रस्त होकर परमात्मा के मंदिर की ओर आकर्षित नही होते क्योकि हमारे अंदर यह भावना होती है कि चले जायेगें और कभी, भगवान क्या बिगाड़ेगें । और हम मंदिर के बहार से ही भगवान को प्रणाम कर आगे बढ़ जाते हैं।

 
हमेशा ऐसे लोगों से दूरी बनाने की कोशिश करो जो आपसे सलाह लेते हैं लेकिन करते अपने मन की हैं
हमारी लाइफ में ऐसे बहुत से मित्र होते हैं जिनका ज्ञान कुछ क्षेत्रों में कम या नगण्य होता है। इन क्षेत्रो में यदि उन्हें कोई समस्या आती है तो वे हमसे सलाह लेते हैं तब हम ये सोचकर कि ये हमारा मित्र है हम पूरे जी-जान से जानकारी एकत्र कर उसे अच्छी से अच्छी सलाह और आप्शन्स बताते हैं लेकिन कुछ दिनों बाद आपको ये ज्ञात होता है कि जो सलाह आपने उसे दी थी उसको उसने दरकिनार कर कुछ और ही किया तब आप ये सोचते हो कि इस बेवकूफ ने मेरा कितना समय बर्बाद किया।
इस तरह के मित्रों को आप इस उपाय द्वारा जज कर सकते हैं
यदि आपका मित्र शादीशुदा है और अध्यात्म में भी रूचि रखता है या टीवी पर आने वाले बाबाओं की बुराई करता है तो, पहले तो आप अपने मित्र से ये पता करें कि उसे कौन से महात्मा का प्रवचन पसंद नही है यदि उस लिस्ट में आपके भी आदरणीय गुरू का नाम हो तो पहली फुर्सत में ऐसे मित्र से दूरी बनाये उसे सलाह न दें।
यदि आपका मित्र अध्यात्मिक नही है तो उससे पता करें कि उसे कौन से फिल्स अच्छी लगती हैं या पता करें कि कौन सा हीरो उसका फेवरिट है या पता करें कि वह किस तरह की किताबे पढ़ना पसंद करता है और भी बहुत सी बातें है जिनसे आप अपनी और उसकी विचारधारा को जज कर सकते हैं और आप ये तय कर सकते हैं कि इसे सलाह देना बुद्धिमानी होगी या बेवकूफी।
पैसे लेकर सलाह दो तो लोग एक्सपर्ट समझते हैं और मुफ्त में सलाह दो तो मूर्ख.
 
कभी भी ऐसे लोगो के साथ अपना ज्ञान न बांटे
हमारे मित्रमंडल एवं हमारे वर्कप्लेस में जब कुछ लोग किसी बात पर चर्चा कर रहे होतें हैं लेकिन वे उस गलत जानकारी को मुद्दा बनाकर आपस में तर्क वितर्क कर रहे हो और आपको उस विषय की पूरी जानकारी है और आपको ये भी पता है कि वे कहाँ गलत हैं या उनकी जानकारी कहाँ गलत है और आप उस चर्चा में अपनी सही जानकारी उन लोगों को देने लगते हैं लेकिन इस जानकारी से बहुत से लोग सहमत नही होते क्योकि वे आपकी बात पर भरोसा नही करना चाहते और आपका उपहास करने लगते हैं कि आप अपनी अपनी चला रहे हंै आपको कुछ नही पता। तब आपकी बुद्धिमानी इसी में है कि उन मूर्ख और भेडचाल लोगों म्के बीच अपना ज्ञान न बांटे। और ये संकल्प कर ले कि जब भी इन लोागों का समूह किसी बात पर तर्क वितर्क करेगा आप अपने आपको उस चर्चा में बोलने से रोकेंगे।

  
अपने सीधेपन या मिलनसार व्यक्तित्व का किसी को गलत फायदा न उठाने दें।
हममें से बहुत से लोगों की आदत होती है कि हम प्रत्येक व्यक्ति से मुस्कुराकर मिलते हैं बिना सोचे समझें कोई किसी काम के लिये हमसे प्रार्थना करता है तो हम अपना फायदा छोड़कर फ्री में उसकी सहायता करते हैं जैसे मान लिजिए आपके  दफ्तर में नॉन टेक्निकल लोगों की संख्या अधिक है जिन्हें कम्प्यूटर चलाने में हर समय कठिनाई आती है तो लोग आपसे सहायता लेते हैं आप अपना काम छोड़कर उनको सिखानें में लग जातें हैं। खासकर लड़कियों को। लेकिन ये आपकी गलत फेहमी है कि वह व्यक्ति आपका एहसान मान रहा है। वह केवल ये सोच कर खुश होता है कि वह कम्प्यूटर में आगे बढ़ रहा है कुछ दिनों बाद आपके आॅफिस के बहुत से लोग अपना पर्सनल काम भी करवाने लग जाते हैं । कुछ लोग तो अपने बच्चों को भी आपसे कम्प्यूटर सिखवानें की मंशा रखते हैं लेकिन बिना किसी शुल्क के। चंूकि आपको मना करने की आदत नही है अत: आप भलमनसाहत से कर देते हैं लेकिन कभी किसी कारणवश आप यदि इनमें से किसी को भी यदि मना कर देते हैं तो आप सबसे बड़े विलन बन जाते हैं अपने आॅफिस के और लोग आपका पत्ता कट करने के चक्कर में रहते हैं। और आप सोचते हैं कि आपने कितने गलत और स्वार्थी लोगों की सहायता की। इससे बचने का एक उपाय ये है कि आप व्यक्ति को व्यवहार के शुरूआत में ही परख लें जैसे कोई व्यक्ति प्रथम बार आपसे कुछ पूछता है तो पहले तो उसे टाले फिर यदि दुबारा पूछे तो उसके पूछने का अंदाज नोट करें यदि वह केवल प्रार्थना कर रहा हो उसे भावों में अकड़पन या अन्य किसी तरह के भाव जो आपको अच्छे न लगे  न हों तो आप उसे केवल एक बार सिखायें दूसरी बार यदि वह कुछ पूछे तो उस मना कर दें अपने काम का बहाना बनायें यदि उस व्यक्ति का व्यवहार आपने प्रति व्यवहार चेंज हो जायें तो उससे तौबा कर लें। हमेशा याद रखें कि सीधा पेड़ हमेशा पहले काटा जाता है। यदि आप लड़कियों की ओर आकर्षित होकर उनका हर काम कर देते हैं तो उनकी नजरों में आपसे बड़ा मूर्ख कोई नही वे केवल अपना काम निकालती हैं और आप सोचते हैं कि वे आपसे इंप्रेस हो रही हैं।
यदि आप किसी को मना नही कर सकते तो कभी किसी से अपना कोई आसान सा काम करवाके देखें आपको उस व्यक्ति की पहचान हो जायेगी। आप उन बहानों को नोट करले जो वह आपके काम को न कर सकने के समय बनाता है फिर सोचिये कि क्या उस व्यक्ति को वास्तव में इस तरह के बहाने बनाने की आवश्यकता थी या वह आपका काम नही करना चाहता था, या वह आपको बहुत हल्के में लेता है मलतब उसकी नजरों में आप केवल काम निकालने के साधन मात्र हैं। आजकल पैसा कमाना बहुत ही टेड़ी खीर होता जा रहा है हम घर से पैसा कमाने ही निकलते हैं लेकिन यदि हम घास से दोस्ती कर अपने मित्रों के कार्य हमेशा मुफ्त में करेंगे जिसमें कि हमारा कुछ पैसा, पेट्रोल समय आदि खर्च हो रहा है तो हम अपने भविष्य ओर अपनी फेमली जो हमसे अपने खर्चौ को आस में रहती है से चिटिंग या कहें कि धोखा कर रहे हैं।

 
उदास न होकर उदासीन हों
कभी कभी हम ऐसी जगह फंस जाते हैं या ये कहें कि हमे ऐसी जगह गुजर बसर या काम करना पड़ता है जहाँ कि संगत और माहौल हमें शूट नही करते और हम उदासी से ग्रसित होते जाते हैं यदि हम कुछ रियेक्ट करते हैं तो हमें मानहानि या अपमान सहन करना पड़ता है अत: ऐसी जगह पर अपने आप को उदासीन कर लिजिये ऐसा उदासीन व्यक्ति जो किसी के कमेंट और छिंटाकसीं पर उदास न होकर उदासीन ही रहें मतलब कोई असर हम पर न हो।

अपना झंडा गाड़ने के लिये स्वयं की बुरी आदतों पर डंडा चलायें
जब हम किसी बुरी संगत या कामवश,लालचवश बुरे कार्य करने लगते हैं तो हम उसे बार बार दोहराते हैं जिससे ये हमारी बुरी आदतों में परिवर्तित हो जाती हैं जिनसे हम छुटकारा पाना चाहते हैं लेकिन नही पा पाते। इन बुरी आदतों के कारण हमारा समाज और कार्यस्थल पर सम्मान कम होने लगता है कभी कभी तो हम स्वयं अपनी इन बुरी आदतों के कारण अपना अहित करते हैं। यदि आप चाहते हैं कि आप पुन: समाज और कार्यस्थल पर वही सम्मान पायें तो और अपना झंडा दुबारा गाड़ना चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी आदतों पर अनुशासन और आत्मबल का डंडा चलायें ताकि आप अपना झंडा दुबारा गाड़ सकें। आप बाहुबल, धनबल से अपनी भौतिम समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं लेकिन आपके स्वभाव की जो समस्यायें है उनके लिये आपको आत्मबल की आवश्यकता होगी जो कि अध्यात्म से और संतसंग से ही पाया जा सकता है। यदि आप अनुशासन की कमी स्वयं में पाते हैं जो कि आपकी आदतों को कंट्रोल करने में सहायक होगा तो इस अनुशासन को पाने के लिये प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में उठने की आदत को विकसित करें।

मेरे गुरूजी द्वारा सत्संग में तपों के प्रकार बताये गये हैं जो ये हैं
मुझे जो याद हैं वे तप और उनके उदाहरण में यहाँ आपको बताना चाहता हूँ जो हमें अपनी लाईफ को इंप्रुफ करने में सहायक हैं पहला तप है अर्जन तप और दूसरा है कर्षण तप। अर्जन तप वह तप है जिसमें हम हर संभव गुणी व्यक्ति से उसके गुण अर्जित करें न कि उसकी सफलता से ईर्ष्या करें और उसके दुर्गुणों को लोगों में चर्चित करें, हम यह नोटिस करें कि उसमें वह कौनसे गुण हैं जिससे वह इस सफल स्थिति में है। जैसा कि मेरे गुरू जी ने बताया कि एक बार वे अमेरिका के एक शहर में गये वहाँ वे उस शहर में गये जहाँ हेनरी फोर्ट के चर्चे थे कि एक बार फोर्ट से यह पूछा गया कि आप यदि अपनी पूरी सम्पत्ति खो दें तो आपको वही सम्पत्ति दुबारा अर्जित करने में कितना समय लगेगा तब फोर्ट ने कहा कि यदि परमेश्वर मेरा दिमाग इसी हालत में रखें और मेरी पूरी टीम का साथ हो तो मै इस स्थिति में दुबारा 5 सालों में पहँुच जाऊंगा। गुरूजी ने इस उदाहरण के माध्यम से ये बताया कि हम लोग रात-दिन अथाह धन सम्पत्ति की इच्छा से धन एकत्र करने में लगे रहते हैं लेकिन कुछ समय बाद वह सम्पत्ति हम खर्च कर देते हैं। हम इस तिकणम में लगे रहते हैं कि धन कहाँ से यकायक आ जाये कुछ लोग तो भगवान के सामने रात दिन कर्मकांडों के माध्यम से जब भी वे मंदिर जाते हैं यही प्रार्थना हाथ जोड़ कर करते हैं कि मेरे पास कहीं से लाटरी या गढ़े धन या माता पिता की सम्पत्ति से ढेर सारा धन आ जाये उन लोगो से ईश्वर कर्मयोग के माध्यम से ये कहना चाहते हैं कि मैने हाथ हमेश फैलाने के लिये नही दिये है बल्कि इसलिये दिये हैं कि तुम कर्मयोग के माध्यम से इन्हीं हाथों से परिश्रम करों और धन अर्जित करों । आगे गुरूजी ने ये भी बताया कि हमें अपने बच्चों को वसीयत के रूप में धन सम्पत्ति नही देना चाहिये बल्कि उस धन सम्पत्ति को अर्जित कैसे करना है इसका फार्मूला देना चाहिये ताकि वह धन हमारे पास सदा एक विधि पूर्वक बनाये गये फार्मूले के माध्यम से आता रहे। जैसे हेनरी फोर्ट ने एक फार्मूला विकसित किया उसे यदि उसकी बुरी परिस्थितियाँ कितनी ही बार धन विहीन कर दें उसके पास एक धन कामने का फार्मूला है जिससे वह गिर कर फिर उठ सकता है। पूरे इस पैरा का सार यही है कि हमे एक धन कमाने का सही फार्मूला विकसित कर लेना चाहिये ताकि धन के लिये हम अपने माता पिता या किसी चमत्कार या किसी लाटरी पर निर्भर न रहें।  जैसे जब हम बचपन से निरंतर साईकिल चलाना सिखते हैं तो हमें जब कभी साईकिल की चेन उतरने की समस्या को फेस करना पड़ता है तो हम अपने अनुसार चेन चढ़ाना सीख जाते हैं और जब कभी भी और कितनी ही बार चेन उतरती है तो हम घबराते नही है ना ही चिंता करते हैं कि ये चेन कैसे चढ़ेगी क्योकि हम अपना चेन चढ़ाने का फार्मूला बना चुके होते हैं। दिन रहते ही हमें रात के अंधकार को मिटाने के लिये दीये और बाती का प्रबंध कर लेना चाहिये।
दूसरा तप है कर्षण तप जैसा कि मेरे गुरूजी ने बताया कि एक बार एक भक्त को दिनभर  भिक्षा में भोजन नही मिला तब उसे भूखे ही सोना पड़ा लेकिन उसने सोने से पूर्व अपने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि हे प्रभु आपका बहुत बहुत धन्यवाद कि आपने आज मुझे व्रत करने का अवसर दिया जिससे मुझे आपको याद करने का एक और अवसर प्राप्त हुआ। इस उदाहरण के माध्यम से गुरूजी ने ये बताया कि हमें अपनी चादर अनुसार गुजर बसर करनी चाहिये यदि हमारी चादर छोटी है तो या तो हम अपना पैर या फिर अपना मॅुंह नही ढँक पायेंगे यदि हम एडजेस्ट कर कर चले तो हम अपने घुटनों को मोड़ कर उस चादर से अपने पूरे शरीर को ढक सकते हैं हमे अपनी परिस्थितियों के अनुसार अपनी लाइफ में एडजेस्ट कर चलना चाहिये और परमात्मा का धन्यवाद करना चाहिये कि उसने हमें इतना अच्छा जीवन दिया। हमें अपने लोभ को जीवन में हर स्थिति में संतुष्ट रह कर समाप्त करना चाहिये। यदि हमारे जीवन में हमने यत्न पूर्वक सुख पा लिया लेकिन शांति हमारे जीवन में नही है तो हमें अपनी बढ़ती हुई इच्छाओं को शांत करना चाहिये तब ही हम अपने जीवन में शांति को पा सकते हैं। आज की गलाकाट स्पर्धाभरे जीवन में हम हर कार्य में सफलता के लिये इतना तनाव पाल रहें हैं जितना तनाव उन लोगों को भी नही होता जो असफल हो जाते हैं।

 
किसी काम को निश्चित समय पर करें। टालने से बचे
जब हम प्रात: उठते हैं तो हमें भगवान से पहले अपने पैंडिंग कार्य स्वत: ही याद आने लगते हैं कि आज क्या करना है। प्रात: का समय होता है परमात्मा का याद करने का उसे धन्यवाद देने का कि आज आपने मुझे फिर एक नई सुबह का आनंद दिया। प्रात: उठने पर जो आपके काम आपके मन में उछलते हैं उन्हें एक कागज पर नोट कर लें और अपने मन को आश्वस्त करें कि आपने ये कार्य नोट कर लिये हैं उन पर उचित ध्यान दिया जायेगा हो सका तो जो जरूरी कार्य हैं दिन में सपन्न किये जायेंगे इससे ये होगा कि आपका मन बिना किसी चिंता के परमात्मा में लगेगा कार्य करने का तनाव कम होगा। जो कार्य आज पूरे करने हैं उन्हें आज ही पूरे करें अन्यथा ये कार्य आपके दिमाग में चिंता बन कर आपको परेशान करेगा। यदि आप किसी चिंता से पीड़ित हैं तो उस चिंता को अपने ऊपर हावी होने से रोकने के लिये उस चिंता का चिंतन किजिये कि वह कौन सा कारण है जिसके कारण आप अपने कार्य नही कर पा रहें है यदि आपके वश में उन कार्यों को सम्पन्न करने का सामर्थ नही है तो परमात्मा से प्रार्थना करें कि वे आपको शक्ति दें। परमात्मा हम सब की इच्छाओं को पूरी कर सकते हैं हमें अपनी जरूरत को बड़ा नही समझना चाहिये जैसे एक चीटी जब नदी में से एक बॅूंद पानी लेती है और हाथी का परिवार भी भरपूर पानी पीता है और फिर भी नदी का पानी निरंतर बहता रहता है। याद रखें कि व्यर्थ की इच्छाएँ जो पुरूषार्थ से ही पूरी हो सकती है उन्हें भगवान कर्मयोग के माध्यम से पूरी करने का संदेश देते हैं यदि आपकी इच्छाएँ लोभ से ग्रसित है तो उन्हें जो है उसी में संतुष्ट होकर अपनी चिंता का अंत करें। किसी भी चीज की अधिकता बुरी होती है मामूली चिंता भी हमें इस ओर प्रेरित करती है कि हम अपने काम समय पर करें । यही चिंता काम को लगातार टालते रहने से बहुत अधिक प्रेशर या कहें कि तनाव हमारे मस्तिष्क को सोते जागते देती है जो हमें अपने जीवन में एक धीमा जहर या चिता के समान प्रतीत होने लगती है। आज हर गरीब अमीर और हर मनुष्य कर्ज, मर्ज (बीमारी) और आपसी रिश्तों में खटास की चिंता से जीवन में नर्क का अनुभव कर रहा है। हममे से हर व्यक्ति इन 3 चिंताओं से मुक्ति के लिये भगवान से रातदिन प्रार्थना करता रहता है लेकिन ये चिंताएँ कम होने का नाम नही लेतीं। कभी कभी हम महसूस करते हैं कि भगवान से जितनी भी प्रार्थना करले कुछ नही होना। इन चिंताओं के कारण हम जो कार्य करते हैं उनमें एकाग्रता कम होने लगती है हम पूर्ण होश में नही रहते, काम करते हैं लेकिन मन कहीं और उधेड़वुन में लगा रहता है। परिवार में अशांति छाई रहती है बच्चे हमसे बात करने से कतराने लगते हैं। हम रात दिन अपनी किस्मत को और अपने भाग्यविधाता को कोसते रहते हैं।
एक प्रसंग है रामायण में किष्किंधा कांड जो हमें इन चिंताओं के भय को कम करने और हमें परमात्मा से जोड़ने में सहायक है। मानलिजिये कि सुग्रीव हम स्वयं हैं, बालि है चिंता जो हमारे ऊपर हावी होती है जिसे ये वरदान है कि वह जिसके सामने भी जायेगा उसका आधा बल उसके अंदर आ जायेगा और सामने वाला बलहीन हो जायेगा, तीसरा है ऋष्यमूक पर्वत जो सत्संग है जहाँ शाप के कारण वह चिंता रूपी बाली नही जा सकता जहाँ सुग्रीव ने बाली के भय से शरण ली थी। जहाँ हमें वे सतगुरू मिलेंगे को हमारे और परमात्मा के बीच की कड़ी होंगे, हमारा मार्गदर्शन करेंगे। जब सुग्रीव ने विचार पूर्वक यह तय किया कि बाली गुफा में राक्षस से युद्ध में मारा गया है क्योंकि सुग्रीव को गुफा से रक्त की धारा बहती हुई दिखाई दी लेकिन उसने इसकी उसकी पुष्टि नही की कि कौन मारा गया है उसने उस गुफा के द्वार पर बड़ी भारी चट्टान लगाई और अपने महल में आकर सभी को ये सूचना दी कि बाली मारा गया है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह हैं कि हम भी अपने कर्म बिना सोच विचार के अपनी अंर्तात्मा और मन की आवाज में अंतर किये बिना ही किये जाते हैं और जब उसका परिणाम बाली कर्मफल के रूप में उस गुफा से चट्टान हटा कर हमारे समक्ष आता है तो हमें अंत में ऋष्यमूक पर्वत रूपी सत्संग में ही शरण मिलती है जहाँ हमें राम रूपी सदगुरू मिलते है जो हमें इस बालि से हमेशा के लिये परमात्मा की कृपा दिलाते हंै जिससे हम इस बालि रूपी कर्मफलों से मुक्ति पाते हैं। इस प्रसंग का सार ये है कि हमें परमात्मा से जुड़ने के लिये एक सदगुरू की तलाश करनी होगी जिसकी वाणी सुनते ही हमारी अंर्तात्मा को लगे कि यही वह गुरू हैं जो अध्यात्म के मार्ग में परमात्मा से जोड़ने के उपाय बता सकते हैं यदि आपको गुरू की महिमा जाननी हो तो संत कबीर के गुरू महिमा के दोहे पढ़ें।

 
जैसे जब हमें सर्दी लगती है तो हम यदि दूर से अग्नि को देख कर ये सोचें कि उसकी गर्मी हम तक पहँुचे तो ये संभव नही यदि हमें उस अग्नि की गर्मी अनुभव करना है तो हमें अग्नि के नजदीक जाना पड़ेगा। उसी प्रकार यदि हम गर्मी में ये सोचे की झरने की फोटो देखकर हम झरने से निकलने वाली शीतल फुहारों को अनुभव कर लें ये सम्भव नही इसलियें झरना जहाँ झरता है वहाँ जाना आवश्यक है। यदि हम मंदिरों जाकर कर्मकांड कर कर ये सोचें की अब भगवान हम पर अवश्य कृपया करेंगें तो ये हम गलत सोचते हैं जब तक हम अपनी आत्मा से भगवान की उपासना नही करेंगें तब तक परमात्मा के नजदीक नही पहँुच सकते। ये सब हमें सदगुरू ही बताते हैं कि हमे किस प्रकार अपने जीवन में यम नियम, सत्य, और धर्म के अन्य अंगों का पालन करते हुये ईश्वर के नजदीक जा सकते हैं। यदि हम भगवान से प्रेम करना सीख जायें तो हम केवल प्रेम से ही भगवान को पा सकते हैं वाकी नियम धर्म सब पीछे छूट जाते हैं। किंतु प्रेम भी तभी कर सकते हैं जब हमें सदगुरू भगवान की सुंदरता से अवगत करायें। मीराबाई और ध्रुव और अन्य भगवान के भक्त जिन्हें भगवान ने शीघ्र ही दर्शन दिये इन्होंने केवल प्रेम के द्वारा ही भगवान को पाया लेकिन गुरू के शरण में जाने पर।

अपने आस पास ज्यादा मीठा बोलने वालों और छुपे हुये निंदकों से अपना अहित न होने दें
हमारे आस पास और हमारे वर्कप्लेस पर कुछ ऐसे लोग होते है जो हमारे सामने तो मीठा बोलते हैं लेकिन पीठ पीछे हमारी बुराई करते हैं और कभी तो पूरा जोर लगा देते हैं हमारा अहित करने में। दूसरे वे होते हैं जिन्हें हम नही जान पाते कि वे हमारे लिये चुपके चुपके गड्डा खोदने में लगे हुये है ताकि समय आने पर उस गड्डे को वे हमारी कब्र बना दें। मेरे गुरूजी ने ऐसे लोगों के बारे में बताया है कि ऐसे लोगों को भगवान अगले जन्म में मधुमक्खी, ततईया और बिच्छू के रूप में जन्म देता है और इनके सर पर इनका विष से भरा डंक भी लगा देता है ताकि हम लोग इन्हें देखते ही पहचान लें।  परमात्मा इन लोगों के लिये ये भी नियम बना देता है कि जैसे ही ये किसी को अपना डंक मारेंगे तो इनका भी अहित होगा मधुमक्खी तो डंक मारते ही कभी कभी मर जाती है। हम कोई भी अच्छा काम करते है इन जैसे लोग हमारे काम में कोई न कोई नुक्स या कपट भाव लोगों को बताने लगते हैं जैसे हम कोई काम नि:स्वार्थ भाव से करते हैं तो ये लोग ये चर्चित करते हैं कि इसमें हमारे कोई स्वार्थ छिपा है ऐसे लोगो की बातों पर बिल्कुल भी ध्यान न दें भगवान पर भरोसा करें और अपना काम करते रहें। ऐसे लोगों की व्यवहार के प्रति उदासीनता रखें और नकारात्मक आवेश न दिखायें। क्योंकि ऐसे लोगों की प्रवृत्ति वे स्वयं भी नही बदल सकते है इनसे किसी भी प्रकार का वार्तालाप या प्रेम न रखें। ऐसे लोगों के लिये रहीम जी ने कहा है कि ओछे लोगों से न तो प्रीत भली है न बैर मतलब दुश्मनी जैसे कुत्ते का काटना और चाटना दोनों से हमें हानि हो सकती है। वैसे तो चाणक्य ने ऐसे धूर्त लोगों से निपटने के लिये भेद निति बताई है।
कुछ लोग तो हमारे आस पास मौजूद रहते हैं जो रात दिन नेगेटिव बातें ही करते हैं उनको हर बात के बीच में नेगेटिव बातें करने की आदत होती है ऐसे लोगो के साथ भी हमेशा नेगेटिव होता रहता है और इनके पास नेगेटिव बातों से भरी कथाओं का संग्रह होता रहता हैं जिनसे इनके शरीर में भी हमेशा नेगेटिव एनर्जी बहती रहती है यदि हम इनसे हाथ भी मिलाते हैं और गलती से कभी ये लोग हमे छू भी लेते हैं तो हमारे साथ भी कोई नेगेटिव घटना हो जाती है। ऐसे लोगों को पहचान कर इनसे दूरी बनायें।

 
हमेशा दीन हीन और दूसरों के आगे हाथ मत फैलाओ
हममें से कुछ लोगों की एक आदत हो जाती है कि हम हमेशा भगवान से माँगते रहते हैं ये माँगने की आदत हमें अपने स्कूल टाइम से हो जाती है जब हम घर वालों के प्रेशर में पढ़ाई करते हैं लेकिन पढ़ाई में अपने सामर्थ्य से अधिक रिटल्ट की उम्मीद से रात दिन भगवान को अच्छे रिजल्ट के लिये पूजते हैं। यही आदत जब हम गृहस्थ आश्रम में आ जाते हैं तो हमें एक दीन हीन मनुष्य के रूप में ला देती है जब हम अपनी बेहतर आर्थिक स्थिति के लिये अपने भाग्य और भगवान और किसी गड़े धन और चमत्कार की उम्मीद में अपने जीवन को जी रहे होते हैं।
जब कोई पिता अपने बच्चें की खुशी के लिये अपने मन से कोई खिलौना या चॉकलेट बच्चें के लिये लाता है तो बच्चा अपने पिता से अत्यधिक अपेक्षाएँ रखने लगते हैं लेकिन वह अपेक्षाएँ जिद और रात दिन किसी इच्छा के लिये रोने की आदत में परिवर्तित हो जाती है तो ऐसे बच्चों को पिता चुप रहने और धैर्य रखने के लिये कहता है क्यो कि वह उचित समय नही होता, जिसके लिये बच्चा जिद  कर रहा होता है। मान लिजिये एक बच्चा जो स्कूल में पढ़ रहा है के लिये पिता कम्प्यूटर खरीद देता है और उसी बच्चे का छोटा भाई या बहन जो कि मात्र कम्प्यूटर को खिलौना समझ उसे लाने के लिये जिद पकड़ लेता है तो वह पिता उसे केवल चुप करा कर ये कहता है कि जब वह बच्चा भी इस योग्य हो जायेगा तो उसे भी ऐसा ही कम्प्यूटर दिया जायेगा। कहने का तात्पर्य ये है कि हमें स्वयं अपने आप को परमात्मा की कृपया के योग्य बनाना पड़ेगा और कर्म करते हुए एक अच्छे अवसर की प्रतीक्षा करनी होगी।
यदि आप को भगवान ने थोड़ा भी दिया है तो उसमें से कुछ अपनी इच्छानुसार जरूरतमंदों को दान करों और उनकी सहायता करने की आदत डालो यदि आप ये आदत डालेंगें तो आप भगवान के प्रिय हो जायेंगे।
आज के युग में हर मनुष्य को अपनी आर्थिक समस्याओं से निजात पाने के लिये दूसरों के आगे हाथ फैलाने के मजबूर होना पड़ता है। अपनी आर्थिक स्थिति हम स्वयं सुधार सकते हैं। हम अपनी आवश्यकताओं जो कि केवल हमसे सबंधित होती हैं जैसे सिगरेट, तम्बाकू सेवन सैर सपाटा, मदिरापान आदि के लिये जो हम खर्च करते हैं उसे हम अपने अंदर कठोर अनुशासन की विकसित कर नियंत्रित कर सकते हैं। जरूरी नही कि हम हर संडे अपने परिवार को घुमाने लेकर जायें चाट पकोड़ी में पैसे बर्बाद करें बच्चों की आदत बिगाड़े। हम अपने मित्रों की तरह नये नये इलेक्ट्रानिक उपकरण जैसे मोबाईल हर साल खरीदें। यह आवश्यक नही कि किसी परिचित के यहाँ कोई कार्यक्रम हो तो हम सदैव मंहगे गिफ्ट ही दें। घर का बजट खराब कर या कर्ज लेकर अनावश्यक लम्बी यात्रा करने से बचें ।  इसी तरह नये नये कपड़े खरीदने की आदत को कम करना चाहिये। इन सभी उपायो से हम हजारों रूपये तो नही बचा किंतु एक हजार तो बचा ही सकते हैं। जैसे डूबते को तिनके का सहारा काफी होता है जब महिने के लास्ट समय में आप सेलरी की प्रतीक्षा में रहते हैं। भगवान भी उसी की सहायता करते हैं जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं। कुछ मित्र जो हमारे लंगोटिया यार की श्रेणी में आते हैं वे भी इस कठिन समय में आपको सम्पन्न और सामर्थवान होते हुये भी आर्थिक सहायता मांगे जाने पर केवल टालते हैं। लेकिन कभी कभी भगवान इन मित्रों के अलग किसी अन्य मित्र को हमारे सहायता के लिये उपस्थित कर देते हैं जिनसे हम कभी भी उम्मीद नही रखते। आर्थिक समस्याऐं आपको समय रहते अच्छे बुरे की पहचान करा कर ही जाती हैं। और आपकी दूसरों के सामने हाथ फैलाने की आदत को मिटाकर।

 
हतोत्साहित और निराशापूर्ण बातें करने वालों से सलाह न लें
निराशा हमारे दिमाग के लिये बिष का कार्य करती है निराशापूर्ण सोच हमेशा एक धीमा जहर है जो हमारी दूरदर्शिता को कम करता है। हमारा आत्मविश्वास निराशापूर्ण और नकारात्मक सोच के कारण लगभग समाप्त हो जाता है जिससे हमारा शरीर भी पर्याप्त बलशाली होने के बाद भी कोई कार्य नही कर पाता। और यदि हमारी संगत ऐसे लोगो के साथ ही हमेशा रहती जो हमेशा हमें हर कार्य और ईर्ष्या के कारण हमें हतोत्साहित करते हैं तो हम स्वयं अपना अहित कर रहे होते हैं। जैसे महाभारत में कर्ण अर्जुन से चार गुना शक्तिशाली था किंतु उसका जो सारथी था शल्य वह उसे पूरे युद्ध के समय हमेशा अर्जुन की बढाई कर उसे हतोत्साहित करता रहा जिससे वह शक्तिशाली होने के बाद भी वीरगति को प्राप्त हुआ।
जरूरत इस बात की है कि हम उन चीजों जिन्हें देख कर, सुनकर हमारे अंदर नकारात्मक सोच जन्म लेती है से दूरी बनायें। जैसे हम प्रात: न्यूजपेपर में अपना राशिफल देखते हैं और यदि राशिफल में रत्ती बराबर भी ये संकेत हो कि आज का दिन अच्छा नही होगा तो भले ही हमने  दो गिलास दूध और बादाम ही क्यो न खाये हों हमार दिमाग नकारात्मक सोचने लगता है। सुबह सुबह न्यूज चैनल न देंखें केवल अपने गुरू का सत्संग सुने। जैसे हम मोबाईल की बैटरी को चार्ज करते हैं वैसे ही सुबह का समय हमें स्वयं को चार्ज करने का समय होता है न कि दुनिया का कचरा दिमाग में भरने का। अपना दिमाग दुनिया में एक्टिव रखो किंतु दुनिया को हमारे दिमाग पर एक्टिव मत होने दो। ये जो लोग आपका भविष्य सुबह सुबह टीवी पर बताने लग जाते हैं वे अपना भविष्य बना रहे होते हैं। आप इनकी भविष्यवाणी यदि सुनते भी हों तो केवल चिंतन करें ना कि इनकी बातें सुनकर चिंता में पडेÞे। बड़े बड़े तांत्रिक जो सुबह और देररात टीवी चैनलों में ताबिज और पता नही क्या क्या खरीदने के लिये कहते हैं वे स्वयं अपने लिये स्ट्रगल कर रहें है आप तो केवल उनके ग्राहक बन रहें है गलत दावों में पड़कर यदि तांत्रिक क्रियाएँ और ताबिजों से ही सबकुछ पाया जा सकता तो बड़े बड़े महाबलशाली राजाओं और रावण और दुर्योधन को युद्ध लड़ने कि क्या आवश्यकता थी वे तो तांत्रिकों की फौज खड़ी कर सकते थे। राजाओं के पास तो एक से एक तांत्रिक हुआ करते थे किंतु उन्हें फिर भी सुंदर राजकुमारी के लिये स्वयंवर में स्वयं को योग्य बताने के लिये अपनी योग्यता दिखानी पड़ती थी। कुछ लोग होते हैँ जो हमे आँखों से नही बातों से सम्मोहित करते हैं जिससे हम उनके झूठे दावों और भविष्यवाणी के चक्कर में फंस जाते हैं ऐसे लोगों की बातों में हमारा दिमाण और मन जरूर फंस जाये लेकिन हमारी अबचेतनमन और अंर्तात्मा हमें एक बार जरूर सचेत करती है।
बहुत से ऐसे लोग हैं जो शेयर मार्केट और जुए में अपनी पूरी जिन्दगी भर की सेविंग गंवा देते हैं और फिर उन्हें होश आता है कि अरे ये क्या हो गया।

 
हमेशा दीन-हीन और दुखियों की सहायता में तत्पर रहें
जब कोई हमारे सामने हाथ फैलाता है कटोरा लेकर तो हम पहली ही नजर में ये भांप जाते हैं कि ये किस केटेगरी का भिखारी है कुछ भिखारी शारीरिक रूप से सक्षम होते हुए भी भीख मांगने को अपना रोजगार समझते हैं कुछ वास्तव में भीख मांगने पर मजबूर होते हैं शारीरिक रूप से अपंग या किसी बीमारी के कारण ऐसे लोगों कि यदि हम सहायता करते हैं तो हम परमात्मा की कृपा के पात्र होते हैं क्योकि परमात्मा ने हमें इस योग्य समझा कि वह वास्तविक भिखारी कटोरा लेकर हमसे दया की उम्मीद लगाये मांग रहा है। हमारे पास भंडारे भरे हैं और यदि हम इन जैसे की मदद के लिये सक्षम है फिर भी यदि हम ऐसे लोगों की मदद में कंजूसी या नजरें फेर रहें हैं तो हमेशा ये याद रखें कि परमात्मा ने जो कटोरा उसे पकड़या हुआ है वह हमारे हाथों में भी आ सकता है। यदि आप किसी व्यापारिक संस्थान या किसी बड़ी कम्पनी के कर्ताधर्ता या मैनेजर हैं और आप अपने अंडर में कार्य करने वाले कर्मचारियों के वित्तीय हितों को नजर अंदाज कर उनके हिस्से का पैसा अपने प्रमोशन को पाने के लिये दबा रहे हैं या अपने बिजनेस को विस्तार करने के लिये तो ये याद रखें कि आप एक दिन सड़कों पर आ सकते हैं, क्योकि जब भगवान हमारे दो हाथों में अपने हजारों हाथों से देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है और लेता है तो भी हजारों हाथों से ही लेता है।
यदि आप इस भावना से पीड़ित हैं कि आपके कर्मचारी पूरा समय आपके संस्थान में मन से नही देते और कामचोरी करते हैं तो इसका कारण आपको पता करना चाहिये स्वयं ना कि अपने आला अधिकारियों के द्वारा। कर्मचारी अपने घर से जब आपके संस्थान में कार्य करने आता है तो उसके पीछे उसकी फैमली और उसके भविष्य की संभावनाओं की भावनाऐं उसके मन में होती हैं इसका सबसे अच्छा उपाय है आप अपने कर्मचारियों को सेलरी तय समय और समयांतराल में ्र बढ़ाते रहें और अपनी कुछ छोटी मोटी बचत योजनाएँ लागू कर उनके परिवार का हित साधे फिर देखिये चमत्कार। जब हम इस दुनिया से विदा होते हैं तो हमारे हाथ खाली ही होते हैं लेकिन हमारे पुण्यकर्म और बुरे कर्म हमारे साथ हमेशा होते हैं वहीं एक ऐसी चीज है जो हम अपने साथ लेजा सकते हैं बाकी जो प्रोपट्री, धन, फैक्ट्रीयाँ, हीरे गहने सब यही छोड़कर जाना पड़ता है। अगर हम अपने गं्रथो में जो 28 तरह के नर्क दिये गये हैं पढ़ लें तो शायद हम बुरे कर्माें से बच सकते हैं। ये याद रखें कि भगवान दुनिया में जितनी भी भाषाएं है उनकी तुलना में प्रेम की भाषा जल्दी समझते हैं। भगवान के ऐसे बहुत से भक्त हुये जिन्होंने कभी कोई पढ़ाई लिखाई नही की वे केवल प्रेम की ही भाषा जानते थें उन्हें भगवान ने अपनी कृपा से लाभांवित किया और शीघ्र ही दर्शन भी दिये जैसे संतकबीर।

 
महाभारत में शकुनी सबसे ज्यादा चालाक था उसकी ही मदद से दुर्योधन ने पांडवों का सारा साम्राज्य छल कपट से जीत लिया था किंतु शकुनी हमेशा दुर्योधन से कहता था कि उसे किसी से डर नही लगता, डर लगता है तो केवल कृष्ण से जिसके सामने उसकी चालाकियाँ फेल हो जाती हैं। हम कितनी भी चालाकियाँ कर लें, लेकिन जिस दिन परमात्मा का डंडा हम पर चलता है तो सब चालाकियाँ धरी की धरी रह जाती हैं। जैसे मान लिजिये कि किसी दुकान में नौकर को मालिक वेतन यदि लेट देने की आदत डाल लेता है या कम वेतन में ज्यादा कार्य करवाता है या एक्स्ट्रा कार्य करवाता है तो यह हुई मालिक की चालाकी अब वह नौकर जो इन चालाकियों से पीड़ित है वह भी अपनी चालाकी दिखाता है जैसे लेट आना, कमचोरी करना एक घंटे के काम को 3 घंटे में करना, मालिक की बुराई, एडवांस लेकर काम पर ना आना आदि। इसी घटना को यदि हम किसी बड़ी कम्पनी के स्तर पर कल्पना करें तो पायेंगे कि वहाँ मीटिंगें होतीं हैं रोज कर्मचारियों पर प्रेशर डाला जाता है नये नये रूल्स केवल नीचले स्तर के कर्मचारियों को लिये ही बनाये जाते हैं तो उस कम्पनी में लोग केवल टाइम पास करते हैं। वहाँ केवल यही होता पहले मीटिंग फिर ईटिंग और लास्ट में चिटिंग। यहाँ मालिक और नौकर दोनों एक दूसरे से चालाकियाँ कर रहें हैं जिसका एक दूरगामी परिणाम होता है कि एक दिन कम्पनी बंद हो जाती है।

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