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शुक्रवार, 16 मार्च 2012

विश्वास और भ्रम से अटूट विश्वास की ओर

एक बार एक साहसी व्यक्ति ने दुनिया के सबसे बड़े जल प्रपात के आस-पास स्थित घाटियों से एक तार डाल कर उस पर चलकर उन घाटियों को पार करने का निश्चय किया वहाँ उपस्थित लोगो ने उसे समझाया कि इस विशाल झरने का वेग और उससे उठती पानी की बंूदों से इतना कोहरा छा जाता है कि तुम्हे तार पर चलकर घाटियाँ पार करने में तार दिखाई ही नही देगा और तुम हवाओं से झोकों से गिरकर मर जाओगे। उस व्यक्ति का आत्मविश्वास जो उसकी
 प्रतिदिन की प्रेक्टिस से आया था लोगों की इस तरह की बातों से कमजोर नही पड़ा। और उसने हजारों लोगों के सामने उस तार पर चलकर उस घाटी को पार किया लोगों ने उसे घाटी पार करने पर बधाई दीं और उससे पूछा कि उसने यह कैसे किया तब उसने कहा कि ये सब मेरा परमात्मा पर विश्वास का फल है। और उसने उन्ही प्रश्न पूछने वाले पत्रकारों से पूछा कि क्या आपको परमात्मा पर भरोसा था कि मै यह कर सकता हूँ तब कुछ लोगों ने कहा कि हम लगातार प्रार्थना कर रहे थे कि आप सफलतापूर्वक यह कर लें। तब उसने उन पत्रकारो से पूछा कि क्या आपको परमात्मा पर विश्वास है कि मै दुबारा यह कर सकता हूँ तब उन लोगों ने कहा हाँ हमें विश्वास है तुम दुबारा इस छोर से उस छोर को तार पर चलकर पार कर सकते हो । तब उसने उन लोगो से कहा कि ठीक है आप लोगों को यदि परमात्मा पर विश्वास है तो आइये मेरे कंधे पर बैठिये मै आपको अपने कंधे पर बैठाकर इस तार को पार करता हूँ तब उन लोगों ने मना कर दिया और कहा कि हमने आपको इस तरह का स्टंट करते हुये कभी नही देखा फिर कैसे हम आपके साथ चल सकते हैं। तब उस व्यक्ति ने अपने छोटे बेटे से कहा तो वह तैयार हो गया और उसने उसे अपने कंधे पर बैठाकर उस तार को पार कर लिया।
एक बार एक गांव में एक तपस्वी साधु ने लोगो को अपने पंचाग्नि तप का तमाशा दिखाया उसमे उसने भरी दोपहरी में अपने घेरे के चारों ओर आग जला ली और उसके बीच बैठकर कड़ी धूप में तप करने बैठ गया। दूर-दूर से लोग उसकी ख्याति सुनकर उसके दर्शन के लिये आने लगे। लोगों की भीड़ में एक आध्यात्मिक व्यक्ति भी उसका यह तप देखने आया उसने उस साधु से जोर से चिल्लाकर कहा कि अरे पाखंडी अपने शरीर को क्यो काला कर रहे हो इस भयंकर अग्नि और कड़ी धूप में। इतना कहकर उस व्यक्ति ने दौड़ लगा दी । वह तपस्वी साधु क्रोध में आकर उसके पीछे अपने त्रिशूल से मारने दौड़ा लेकिन वह उसे नही मार पाया और दौड़ते दौड़ते थक गया तब उस उस व्यक्ति ने कहा माफ करना साधु बाबा आपको पाखंडी कहा लेकिन ये बताये कि जब आप मेरे कटु शब्दों की गर्मी को सहन नही कर सके तो आपका यह पंचाग्नि तप किस काम का। आपने पंचाग्नि तप को समझा ही नही पंचाग्नि तप का आशय अपनी पॉंच इंद्रियों को नियंत्रित कर अपनी गलत आदतों को रोकने से है ये पाँच इंद्रियाँ हैं-काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार।
उक्त ऊपर वर्णित उदाहरणों से स्पष्ट है कि कहीं न कहीं हमने परमात्मा को समझने पर भ्रम की स्थिति पाल रखी है हम प्रतिदिन भगवान से प्रार्थना करते हैं कि भक्तजनों के संकट पल में दूर करे ओम जय जगदीश हरे। लेकिन फिर भी हमारा विश्वास अपने परमात्मा के प्रति किसी बड़ी समस्या और कठिन परिस्थितियों में कमजोर पड़ता जाता है हम तो अपने इष्ट के अस्तित्व पर ही स्वयं से सवाल करने लग जाते हैं। हम अंधविश्वास और भ्रमित होकर अपने अनुसार देवी देवाताओं को पूजने लग जाते हैं कोई किसी स्पेशल मनोकामना पूर्ण करने वालें देवता के मंदिर में चढावा चढाने जाता है कोई किसी देवी को, कुछ लोग तो तांत्रिकों को ही पूजने लगते हैं फलांने बाबा, फलांनी देवी । यदि हम अपनी कठिन परिस्थियों में भी अपने इष्ट के प्रति अटूट विश्वास रखें जैसे पहले उदाहरण में तार पर चलने वाले व्यक्ति के बेटे ने अपने पिता पर किया तो हम बड़ी से बड़ी कठिनाईंयों को भी पार कर सकते हैं। कोई भी समस्या इंसान से बड़ी नही होती ये हमें अपने दिमाग में बैठाना होगा। जैसे कितनी भी बड़ी चट्टान हो उसे तोड़कर या काटकर रास्ता बना लिया जाता है या तरबूज कितना ही बड़ा क्यों न हो हम उसे काट कर छोटे-छोटे टुकड़े कर खा सकते हंै। हम पहले से ही ये क्यों तय करें कि ये समस्या हमें ले डूबेगी। यह स्थिति हम सभी के जीवन में आती ही रहतीं हैं कभी हम भगवान पर विश्वास कर दूसरों को प्रेरित करते हैं कभी हम स्वयं ही हताशा और निराशा से अपने शांत मस्तिष्क रूपी जलाशय में इन कंकर रूपी समस्याओं से लहरें उत्पन्न कर लेते हैँ। हम सोचते हैं कि हम ही क्यों हर समय समस्याओं से ग्रस्त रहते हैं हमारी तो किस्मत ही खराब है। और हम अपने इष्ट से खींज कर, चिढ़कर पूजा पाठ से बोर हो जाते हैं हमें अपने जीवन में रस जाता सा प्रतीत होता है कभी कभी तो लगता है कि औरों पर भगवान हमसे ज्यादा मेहरबान है हमारे तो पिछले जन्मों का फल हम भोग रहे हैं।
एक बार एक बुजुर्ग से उसका पोता कहता है कि आप प्रतिदिन भागवत कथा, रामायण आदि ग्रंथ क्यो पढ़ते हैं आप तो इन्हें इतने वर्षों से पढ़ रहे हैं फिर क्यों इन्हें बार बार पढ़ते हैं आप बोर नही होते? तब वह अपने पोते को एक कोयले की बाँस से बनी डलिया खाली करकर देता है और कहता है कि इसमें पानी   भरकर लाओ वह उस डलिया में पानी भर कर लाता है लेकिन वह रास्तें में ही खाली हो जाती है। वह बुजुर्ग उसे पुन: पानी भरकर लाने को कहता है इस तरह यह क्रम चलता रहता है। आखिरकार वह पोता थक कर, खींज कर और चिढ़कर अपने दादा से कहता है यह तो असंभव है कि मै इसमें इतनी दूर से पानी भर कर आप तक लाऊँ तब वह अपने पोते  को उस डलिया को ध्यान से दिखाते हुए कहते हैं कि देखों जब तुम इसमे बार-बार पानी भर रहे थे तब इस डलिया में जमा हुआ कोयला पानी के साथ ही धुल गया और और यह डलिया अब साफ हो गई है। इस उदाहरण से स्पष्ट है कि हमें कर्मकांडो को कम करते हुए प्रतिदिन अपने ग्रंथो से आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित करते रहना होगा या अपने गुरू का सत्संग सुनना होगा, ध्यानयोग करना होगा ताकि हमारा अपने इष्ट के प्रति विश्वास, अटूट विश्वास की ओर अग्रसर हो। हमारे भ्रम और अंधविश्वास जाते रहें।
हमें परमात्मा के सततÞ सम्पर्क स्थापित करने की कोशिश में लगे रहना होगा इस परमात्मा के जो सर्वशक्तिमान है जो इस पृथ्वी को करोड़ों सालो से लगातार बैलेंस कर घुमा रहा है यदि पृथ्वी एक अंश भी झुकती है तो भयंकर सर्दी और गर्मी से हमारा सामना होता है। परमात्मा ही है जो मनमोहक सुगंध हजारों तरह के फूलों में डालता है जबकि मिट्टी में कोई इत्र हम नही डालते सिवाय खाद और पानी के। परमात्मा ही है जो हमारे इस धरती पर आने से पहले ही हमारे दूध और भोजन की व्यवस्था कर देता है। हमारे लिये दो फरिश्तों को पहले ही हमारे पालन पोषण और सुरक्षा के लिये भेज देता है जिन्हें हम माता -पिता कहते हैं। परमात्मा ही है जो 400 तरह के आम, सैकड़ो तरह के फल और जड़ी-बूटियाँ पैदा करता है। परमात्मा ही जो चीटी से लेकर शेर, और मच्छर से लेकर व्हेल मछली के भोजन की व्यवस्था करता है। परमात्मा ही है जिसने हमें इतनी समझ दी है कि हम हजारों लोगों के समूह से किसी एक को पहचान सकते हैं। वैसे जो संत कबीर ने अपने दोहो में कहा है कि परमात्मा के गुणों का बखान तो असंभव है। फिर भी हम अपने पिछले अनुभव जिसमें हमारे इष्ट ने हमें भयंकर कठिनाईयों से बचाया था को याद कर अपने विश्वास को भ्रम से दूर रहकर कायम रख सकते हैं। जैसे हम छोटे-मोटे पत्थर जो कि हमारे रास्ते में आते हैं उन्हे ठोकर मार पर दूर कर देते हैं और यदि हमारा वस्त्र या आंचल किसी कटीले पेड़ या पौधे में उलझ जाता है तो हम धैर्य पूर्वक अपने वस्त्र को उन कांटो से निकलकर आगे बढ़ते हैं वैसे ही हमें परमात्मा पर अटूट विश्वास को कायम करते हुए अपने अंदर आत्मविश्वास लाते हुए हर समस्या को सुलझाते हुए आगे बढ़ना हैं।

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