पृष्ठ

बुधवार, 28 मार्च 2012

एकाग्र मन की शक्ति ( power of concentration )

साज (वाद्य यंत्र), घोड़ा, अस्त्र-शस्त्र, और कम्पयूटर ये कुछ उदाहरण है इनकी क्रमश: मधुरता, द्रुतगति, तीव्र प्रहार और सकारत्मक प्रयोग ये सभी इनके चलाने वाले व्यक्ति
 पर निर्भर करता है कि वह चाहे तो इनका अपने हित और सर्वहित के लिये उपयोग करे या जिन्दगी भर इनको बच्चों की तरह बेमतलब ही प्रयोग करता रहे और भ्रमित होकर इनसे उब जाये और चिढ़कर इन्हें फेंक दे। आपने ध्यान दिया होगा कि जब हम मेगनीफार्इंग ग्लास जिसे हम बिल्लोरी काँच कहते हैं को धूप में कुछ समय तक किसी चीज पर फोकस करें तो वह चीज जलने लगती है। लेकिन यही प्रकिया अंधेरे में करने पर कोई प्रतिक्रिया होना असंभव होता है। क्योकि धूप का अभाव होता है भले ही अन्य कृत्रिम रोशनी आ रही हो।  इन उदाहरणों में जिन क्रियाकलापों की बात कही गई है वह बिना किसी के सिखाऐ नही आतीं या किसी को कॉपी कर कर ही हम सीख सकते हैं। हम मनुष्यों में सीखने की क्षमता हमारे मन की एकाग्र शक्ति पर निर्भर करती है। शेर भी यदि एकाग्र होकर शिकार के लिये घात लगाकर बैठता है तो वह एक बार में केवल एक ही प्राणी का शिकार कर सकता है। लेकिन हममे परमात्मा ने इतनी शक्ति दी है कि हम एक ही समय में अनेक लोगों को नियंत्रित कर सकते हैं। तो क्यो न हम अपने मन को अपने भलाई और अपनी प्रगति के लिये नियंत्रित करने का अभ्यास आज से ही शुरू करें। एक छोटा सा प्रयोग करें अगली बार जब आप किसी मॉल या सुपर मार्र्केट में जायें तो आप मन ही मन ये तय करें कि आप पूरे मॉल या सुपर मार्केट में केवल एक बिस्किट का पैकेट ही खरीदेंगे। आप सामान्य होकर मॉल में जायें और फिर पूरे मॉल में घूम कर आयें। जब आप मॉल से निकल आयें तो देखें आपने अपने मन को कितना नियंत्रित किया यदि आपके हाथ में केवल बिस्किट का पैकेट ही है तो समझ लिजिए आपका यह पहला अभ्यास सफल रहा। यह प्रयोग पूरी ईमानदारी से करें। महिने के उसी दिन करें जब आपका मॉल या सुपर मार्केट में जाने का दिन तय हो। यदि आप उस दिन अपने माल को मॉल में खर्च होने से बचा पाये तो समझिये आप अपनी बुरी आदतों से भी स्वयं को इस तरह के अभ्यास से बचा सकते हैं। अब प्रश्न ये आता है कि आखिर हम अपने मन को कैसे नियंत्रित करें। इसका कोई सौ प्रतिशत अजमाया हुआ तरीका तो है नही क्योकि हमारा मन इतना तीव्र है कि एक पल में यहाँ तो दूसरे पल में ना जाने कहाँ। हम मंदिर में भगवान का दर्शन करने जाते हैं लेकिन हम वहाँ पूरे नही होते हमारा मन बेतुकी बातों में खोया रहता है हम सोचते हैं कि हम मंदिर में आकर भी एक पापी की तरह सोच रहें हैं। एक बात गांठ बांध लें कि गुरू है तो जिन्दगी शुरू है। अपने सद्गुरू की वाणी को पूर्ण रहकर मन, क्रम, वचन और संयम से अपने आचरण और स्वयं को रूपांतरित करने में लगायें। एक दिन ऐसा आयेगा आप स्वयं में एक बहुत बड़ा रूपांतर देखेंगे जो आप अपनी बीती जिन्दगी जिसमें गुरू का मार्गदर्शन नही था में असंभव मानते थे। पढ़ाई तो सभी करते हैं लेकिन परीक्षा में वही उच्च श्रेणी में सफलता पाता है जो एकाग्रमन से पढ़ाई करता है।
यदि आप किसी संस्था या  कार्यालय में काम करते हैं तो आपने ध्यान दिया होगा कि कुछ लोग आपकी संस्था में ऐसे होते हैं कि भले ही उन्हें प्रतिदिन लेट आने या किसी अटपटे काम के लिये बॉस द्वारा रोज डाँट खानी पड़े वे कोई न कोई बहाना बना ही लेते हैं। और प्रतिदिन वही दोहराते हैं क्योकि वे लोग किसी खास कार्य के लिये अपने मन को एकाग्र कर चुके होते हैं भले ही आप उन्हें कितना भी प्रवचन दें वे अपने प्रोग्राम्ड किये हुये दिमाग के अनुसार ही चलते हैं क्योकि वे तय कर चुके होते हैं। भले ही उनको कितना भी नुकसान झेलना पड़े। इसे आप अपने अनुसार समझ सकते हैं या ये भी कह सकते हैं कि विनाश काले विपरीत बुद्धि। एक बात और याद रखें कि जरूरी नही कि हम जो देख रहे हैं वही सत्य है। हमे जो दिखाई दे रहा है जरूरी नही कि वह वैसा ही हो। कुछ लोग अपने जीवन के लक्ष्य को अपने मस्तिष्क में इस तरह प्रोग्राम्म किये होते हैं कि भले ही वह दुनिया के नजरों में गलत हो उनके लिये वह एक ऐसा टास्क है जो किसी भी हालात में पूरा करना है। इन लोगो में एक अदृश्य शक्ति होती है जो इनके मन को किसी भी स्थिति में एकाग्र रखती है। जो कि जो कि गुरू द्वारा बताये मार्ग से ही हम अपने अंदर ला सकते हैं। आप किसी बड़े पत्थर को एक छोटे से हथौड़े से लगातार एक ही जगह मारते रहें एक दिन ऐसा आयेगा कि वह पत्थर टूट जायेगा। और यदि आप रोज उसी पत्थर पर कभी इधर तो कभी उधर चोट करते रहे तो वह नही टूटेगा। पुराने जमाने में लोग घोड़ों और बैल से गाड़ी को खीचते थे लेकिन वह घोड़े और बैल भी एक हद तक ही कार्य कर सकते थे । एक वैज्ञानिक जेम्स वॉट हुए जिन्होनें भाप जैसी शक्ति को हजारो किलोमीटर की यात्रा करने के लिये एक इंजन में लगाया जो कि स्टीम इंजन कहलाता है, उन्होंने उड़ती हुई भाप को एक जगह इकट्ठा कर एक सकारात्मक कार्य में लगा दिया। और परिणाम हमारे सामने है। एक और  उदाहरण ले सकते है विद्युत शक्ति का जो हमारे घर की बोरिंग मशीन से पानी को तीन सौ से चार सौ फीट गहराई से हमारे उपयोग के लिये बटन दबाते ही बहार फेंकना शुरू कर देती है।   मन को नियंत्रित करने का अभ्यास ऐसा ही है जैसे हम किसी बीज को जमीन में बोतें है लेकिन उसे एक विशाल वृक्ष बनकर फल देने में समय लगता है वह निर्भर करता है उपजाऊ जमीन, खाद और पानी पर अर्थात् हमारी सत्संग, आध्यात्मिक ज्ञान और गुरूवाणी पर जो कि प्रतिदिन आवश्यक है।
मन की शक्ति का यदि आपको डेमो देखना हो तो आप आजकल जो डिस्कवरी चैनल पर एक कार्यक्रम आता है deception with keith barry देखें या नेट पर सर्च करें। एक मन की शक्ति तो हम बचपन से ही अनुभव करते आ रहें हैं जैसे हम अपने किसी करीबी को लगातार याद करते हैं तो अचानक ही उससे हमारी मुलाकात हो जाती है या अगले ही पल उसका फोन आ जाता है और हम उसे कहते हैं अभी अभी मै आपको ही याद कर रहा था, बड़ी लम्बी उमर है आपकी हम लोग आपकी ही बातें कर रहे थे। नोट करें कि मन को नियंत्रित करने का अभ्यास ऐसा ही है जैसे प्रतिदिन टेबल की धूल साफ करना। क्योकि हम किसी जंगल या आश्रम में तो रह नही रहे हम सैकड़ो तरह के लोगों के बीच रह रहे हैं जिनमे चालाक, धुर्त, दृष्ट, बेइमान, कपटी और सीधे साधे लोग शामिल हैं। माँ या सास की भी सुनना है, पत्नी या पति की भी सुनना है, बच्चों के साथ भी एक नियंत्रित व्यवहार करना है, बॉस की भी सुनना है और कार्यस्थल की राजनीती  झेलना है। सुंदर मनमोहनी नवयौवना या नवयुवक को देख कर भी स्वयं की भावनाओं को नियंत्रित रख कर मर्यादा का पालन करना है, पैसा कमाना है, पैसा बचाना हैं, बैंक की ईएमआई, स्कूल की फीस भी भरना है। भविष्य के सपने साकार करने हैं। इन सब को सोचकर हमारा ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है। यकीन  मानिये जिस दिन आपने अपने मन को नित्य शांत कर ध्यान में लगा दिया उस दिन से आप स्वयं में एक ऐसी शक्ति को आता हुआ पायेंगे जो इन प्रतिदिन के कार्यों को जिन्हें सोचकर हमें चिंता दीमक की तरह खोखला करने लगती है, एक बच्चों का खेल लगेगा। बस इतना याद रखें गुरू है तो जिन्दगी शुरू है।परमात्मा के हजार नाम हैं किसी एक नाम पर पूरी निष्ठा के साथ मन को एकाग्र करना है।
एक छोटा सा प्रयोग या कहें कि  अपने मन को नियंत्रित करने का तरीका हम अपना सकते है-कहा गया है आराम है हराम, हमारा शरीर मात्र छह घंटे की नींद में चार्ज हो जाता है जैसे मोबाईल की बैटरी। उसके बाद भी यदि हम बिस्तर पर पड़े रहे तो हम अपने शरीर को सड़ा रहें हैं या अपने आलस्य को बढ़ावा दे रहे हैं। एक समय को तय कर लें कि हम फलां समय पर बिस्तर को छोड़ देंगें तो ये हमारी एक अच्छी आदत बन जायेगी क्योंकि समय बहुत मूल्यवान है हमें क्षण-क्षण को बचाना है। हमें अपने कार्य और लक्ष्य पर पूरा ध्यान केन्द्रित करना है जैसे हम बपचन में चलते हुये कहीं तमाशा देखने रूक जाते थे और जब हमारी उम्र बढ़ती जाती है तो हम अपने कार्य को छोड़ तमाशा देखने में अपना समय बर्बाद नही करते। हमें अपने अन्य मेकअप के अलावा प्रत्येक दिन घर से निकलते समय यह तय करना है कि हम अपने मुख पर पूरे दिन मुस्कुराहट का मेकअप बनाये रखेंगें और मस्तिष्क को कैसी भी कठिन परिस्थितियों हों, शांत रखेंगे। हंसते हुए को देख सभी हंसते हैं और उससे बाद में हंसने का कारण पूछते हैं जबकि रोते हुए को देख कर कोई नही रोता बल्कि दया कर पूछता है कि बात क्या है, रोते हुए के साथ कोई रोने नही बैठता।

right click and open in new window for ZOOM

1 टिप्पणी:

  1. सचमुच एकाग्र मन करने से कार्य क्षमता बढती है
    और मन भी प्रसन्न रहता है ।।

    जवाब देंहटाएं