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शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

दुर्जनों का विरोध और दुर्जनों से मुक्ति जरूरी है

Develop your Initiative.
एक बार दो उदण्ड बच्चे एक सरोवर किराने गये और एक मेढ़क को पकड़कर उसकी पिछली टांग में धागा बांधकर  उसे सताने लगे। इस पर मेढ़क ने उन दोनों से कहा कि मुझ कमजोर को सताते हो यदि दम है तो इसी सरोवर में जो साँप है उसकी पूंछ में धागा बांधकर सताकर दिखाओं तो जानूं। हमारे आस पास या ये कहें कि हमारी प्रतिदिन की दिनचर्या में भी हम स्वयं को भी ऐसे ही पाते हैं। हम कोई देवता या शक्तिमान तो हैं नही जो किसी को सबक सीखा सकें। कुछ लोग तो दुर्जनों की दुष्टतापूर्ण बातों को ये कहकर टाल देते हैं या अपने मन को समझा लेते हैं की भगवान तुम्हे जरूर सजा देगा। ऐसे लोग चुपचाप लोगों की बातें सुन कर 1 प्रतिशत भी विरोध नही करते ऐसा करके वे उस दुर्जनता को बढ़ावा देते हैं। और ये दुष्ट ऐसे ही कमजोर और बिना विरोध सहन कर सकने वाले लोगों को लगातार अपना निशाना बनाते हैं। ऐसे विरोध नही करने वाले लोगों को सोचना चाहिये भगवान तो सजा देता है और देगा ही लेकिन आपका भी तो कर्तव्य है कि कम से कम उस दुर्जन का विरोध तो करो या उसने मुक्ति का एक विधि पूर्ण उपाय निकालो अन्यथा वह आपके दिमाग की शांति को भंग कर देगा। और आप रात दिन उसका बुरा सोचने में ही अपना अमूल्य समय और ऊर्जा नष्ट करेंगे।

एक सत्य घटना पर आधारित कहानी उदाहरण के लिये -बहुत समय पहले एक जोड़े या पति-पत्नि में विवाद हो गया उनके दो लड़के थे उनकी उम्र थी क्रमश: 4 और 6 वर्ष । पत्नि ने शर्त रखी कि मै तुम्हे तलाक तभी दूंगी जब तुम दोनों बच्चों को मुझे सौपोगे पति ने हामीं भर दी और दोनों में तलाक होगाया। पत्त्नि ने अपने प्रेमी से विवाह कर लिया और दोनों बच्चों को किसी भी तरह से अपने पूर्व पति के सम्पर्क या मिलने से रोकने के लिये बच्चों को कड़ी निगरानी में रखा। अब धीरे धीरे इन बच्चों के सौतेले पिता ने इन्हें टार्चर करना शुरू कर दिया और लगभग 15 वर्ष तक वह उन्हें दरिंदों की तरह मारता पीटता । इस कृत्य में उनकी माँ भी जो अपने प्रेमी के प्यार में अंधी हो चुकी थी पूरा साथ देती। इन बच्चों के पिता ने भी अपना दूसरा विवाह कर उस शहर को छोड़ दिया और उन बच्चों को भूलकर अपना एक नया परिवार बसा लिया। अब ये बच्चे किसी तरह अपनी पढ़ाई करते जेब खर्च के लिये दुकानों और पार्टटाइम जॉव करते। लेकिन हमेशा डरे डरे भगवान से प्रार्थना करते किसी को तो भेजों हमारी सहायता के लिये। इन दोनों भाईयो में जो बड़ा भाई था वह किसी तहर इन प्रताड़नाओं का आदी हो गया और जो छोटा भाई था उसने तय कर लिया कि किसी भी तरह अपनी पढ़ाई कम से कम 12वीं कक्षा तक तो पूरी की जाये इस सौतेले पिता के घर में रहकर नही तो पूरी जिन्दगी कमाने के चक्कर में और सर ढांकने के चक्कर में पढ़ाई छूट जायेगी। और उसने अपने मनोबल के बल पर 15 वर्ष तक सहन करते हुए जिस दिन उसका 12वीं कक्षा का परिणाम आया उसने उस घर को सदा के लिये छोड़ दिया। और करीब 1 वर्ष तक अपने दुष्ट माता और सौतेले पिता से बचने के लिये किसी दूसरे शहर में जाकर छोटी सी नौकरी कर अपना जीवन चलाया। लेकिन उसे अपने बड़े भाई की चिंता थी जो वहाँ सौतेले पिता के पास था। लेकिन उस घर में वापस जान मतलब साँप के बिल में हाथ डालना लेकिन उसने तय किया कि वह अपने बड़े भाई को भी किसी तरह मोटिवेट कर उन दुष्टों से मुक्त करा लेगा। वह वापस उस घर में गया जैसा कि उसे पता था उस पर घनघोर अत्याचार दुबारा होने लगे लेकिन वह एक उचित समय का इंतेजार करता रहा और अपने भाई को लगातार समझाता रहा कि किसी भी तरह से हमको इस से छुटकारा पाना है अन्यथा हमारा पूरा जीवन नर्क हो जायेगा। उसके बड़े भाई को उसकी बात कुछ समझ में आई और होली वाले दिन जब सब नशे में और होली खेलने में व्यस्त थे वे दोनो उस घर से भाग निकले और आज पूरे 13 वर्ष हो चुके हैं भले ही वे एक अभावों वाला जीवन जी रहे हों लेकिन फिर भी उन्होंने अपना विवाह गरीब कन्याओं से किया।
इस पूरी कहानी का सार ये है कि हमें खाना तो दो या दस रोटी है लेकिन क्यों हम अपनी आत्मा और अपने आत्मसम्मान की बलि चढ़ायें। अपना पेट तो हम आत्मसम्मान और दुष्टों और दुर्जनों के बीच से निकल कर भी भर सकते हैं। भगवान भी उनकी सहायता करते हैं जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं।
दुर्जनों के अंदर भी परमात्मा का अंश उनकी अंर्तात्मा होती है जो उन्हें दुष्ट कार्य करने से रोकती है लेकिन सज्जन लोग उनका विरोध नही करते तो वह दुष्ट लोग अपनी अंर्तात्मा की आवाज को भी नही सुनते क्योकि उन्हें कोई ये अनुभव कराने वाला नही होता कि उनकी अंर्तात्मा की आवाज सही है वे जो कर रहे हैं वह गलत है क्योकि वह उस गलत कार्य को लगातार करने का आदी हो जाता है जैसे शिकारी और चोर क्योंकि सज्जन लोग उसे गलत कार्य के लिये नही रोकते। आप इसका अर्थ ये नही निकालें कि हम हर किसी से लड़ाई या दुश्मनी पाल लें । बुद्धिमान सभी होते हैं लेकिन आपने और हमारे बुर्जुगों ने ये अनुभव आवश्यक किया होगा कि पूरे समूह में एक व्यक्ति ऐसा होता है जिसे हर कोई अपनी समस्या के हल निकालने के लिये समझदार मानता है। हमें बुद्धिमानी से ऊपर उठकर एक समझ विकसित करनी ही होगी जो दुष्टों और   दुर्जनों के चक्रव्यूह से निकालने में सहायक हो। अब हम प्रतिदिन तो किसी से बैर मोल नही ले सकते। इसलिये समझदारी इसी में है कि अपनी समझ को विकसित कर समस्या का निदान खोजा जाये । हम परमात्मा की शक्ति को बाहार खोजते हैं जबकि वह तो हमारे मनोबल और आत्मबल के रूप में अंदर है जिसे हमे मजबूत करना है, जगाना है। आप कल्पना किजिये कि उस परमात्मा की शक्ति कितनी अनंत होगी जिसने खंूखार बर्बर शेर, व्हाइट टाइगर शार्क  और जंगली हाथियों को बनाया है जिसने हमारे जैसी न जाने कितनी ही पृथ्वीयों और सूर्यो की अंतरिक्ष में रचना की है। वही है जो हवाओं को सुहाना और आंधी में बदल देता है, वही है जो चिंगारी को प्रचंड आग बना देता है, वही है जो इंसान को बड़े बड़े आविष्कार करने की समझ देता है। वही है जो चालाक लोगों के बीच में भी भोले लोगो का गुजारा करा देता है, वही है जो काल के गाल में उन महान और दुष्ट लोगों को समा देता है जो पूरी पृथ्वी पर अपना साम्राज्य जमाना चाहते थे। वही है जो चींटी से लेकर हाथी तक के लिये भोजन उपलब्ध कराता है। हरि अनंत, हरि कथा अनंत:। उस परमपिता का धन्यबाद करें कि उसने हमें सबकुछ दिया जिससे हम अपनी वर्तमान परिस्थितियों से अपने अंदर समझ विकसित कर निकल सकते हैं। ध्यान करें परमात्मा के नाम से जुडेंÞ।

जो बात दवा से हो न सकी, वह बात दुआओं से होती हैं
जब कामिल मुर्शिद मिलते हैं, तो बात ख्ुादा से होती है।

मत यकींन कर हाथों की लकीरों पे, किस्मत तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नही होते।

ये गलतफहमी न पालें कि जोश में आ जाओ और छोड़ दो नौकरी, भिड़ जाओ किसी से भी। यहाँ हम बाहुबल की नही आत्मबल और मनोबल की बात कर रहे हैं। हम उस भेड़चाल से अगल चलने की बात कर रहे हैं जो हमें भीड़ से अगल कुछ अलग करने का मनोबल दे। लेकिन अपनी पूरी जिम्मदारियाँ उठाते हुए। न कि गैर जिम्मेदारी और लपरवाह होकर। हमें उस लालटेन या लैम्प का कांच साफ करना है जिस पर कांलोंच छा गई या कालापन छा गया है और पूर्ण प्रकाश बाहार नही आ पा रहा,ना की कांच को फोड़ना है। खरगोश से ईर्ष्या न करते हुए कछुये की तरह ही सही अपने लक्ष्य की ओर लगातार बढ़ना है। हमें अपनी परिस्थियों को जिन्हें हम चेंज कर सकते हैं, बदलने का साहस करना होगा जैसे हम राह में आये छोटे मोटे पत्थरों को ठोकर मार आगे निकल जाते हैं और जो बड़े पत्थर आ जाते हैं उनसे बचकर आगे की यात्रा जारी रखते हैं। वैसे ही जो परिस्थियॉं हमारे वश में नही, जिन्हें हम बदल नही सकते उन्हें इग्नोर कर या नजरअंदाज कर आगे जीवन की यात्रा जारी रखें।
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दुष्टो के सामने नर्क की बातें करना कभी कभी निर्दोष और मासूमों के लिए घातक होता है, वह दुष्ट हमारे लिए ही नर्क का निर्माण कर देता है. लाइव नर्क जैसे हिटलर ने किया था. वह एक साथ सेकड़ों लोगो को नर्क की तरह भट्टी में स्वाह कर देता था. 


1 टिप्पणी:

  1. विरोध न करने से दुष्ट का हौसला बढ़ता ही है -
    विधि-सम्मत हल निकालना ही चाहिए ।।
    सुन्दर प्रस्तुति ।आभार ।।

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